दिल्ली के महरौली में लिव इन में रहने वाले आफताब अमीन पूनावाला ने अपनी प्रेमिका श्रद्धा की हत्या कर दी। श्रद्धा के शव के 35 टुकड़े कर दिए और जंगल में फेंक दिया। दिल्ली के ही मोड़बंद गांव के नीतेश यादव ने अपनी 21 साल की बेटी को गोली मार दी। इसके बाद उसके शव को सूटकेस में रखकर यमुना एक्सप्रेसवे के किनारे फेंक दिया।
इसी तरह दिल्ली के ही पालम इलाके के रहने वाले 25 साल के केशव ने अपने ही परिवार के चार सदस्यों को बेरहमी से मार डाला। केशव ने अपने मां-बाप, दादी और बहन को चाकू से गोदकर हत्या की। दिल्ली से सटे हरियाणा के नूंह में भी कुछ ऐसा ही वाक्या देखने को मिला। यहां एक महिला ने अपने ही तीन बच्चों को पानी के टैंक में फेंककर मार डाला। खुद की जान देने की भी कोशिश की, लेकिन बच गई।
इन सब घटनाओं में एक चीज मिलती-जुलती है। वह यह कि सभी घटनाओं को परिवार के ही किसी सदस्य या बेहद करीबी ने अंजाम दिया है। यह प्रवृत्ति आखिर क्यों बढ़ रही है। इसको लेकर हमने मनोवैज्ञानिक प्रो. रूपेश गोयल से बात की। उन्होंने इन घटनाओं के पीछे के मनोवैज्ञानिक कारण को उजागर किया। उन्होंने बताया कि आखिर क्यों लोगों में खूंखार प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है? क्यों लोग अपनों के ही खून के प्यासे होने लगे हैं? आइए समझते हैं…
क्यों लोग अपनों के ही खूब के प्यासे हो रहे?
प्रो. रूपेश गोयल कहते हैं, ‘यूं तो इस तरह की घटनाएं पूरे देश में बढ़ रहीं हैं, लेकिन सबसे ज्यादा असर मेट्रोपोलिटन शहरों में देखने को मिल रहा है। इसके कई कारण हैं। कुछ कॉमन तो कुछ जगह के हिसाब से है।’
प्रो. गोयल कहते हैं, ‘आजकल लोग तकनीक पर ज्यादा आश्रित हो गए हैं। हर काम के लिए तकनीक पर ही निर्भर रहते हैं। इसके चलते लोगों की मनोदशा तेजी से बदलने लगी है। लोग अब वर्चुअल दुनिया को हकीकत मानने लगे हैं। वर्चुअल दुनिया में जो कुछ होता है, उसे असल जिंदगी में करने की कोशिश करते हैं। फिल्मों, सीरियल, वीडियो गेम का इंसान के दिमाग पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। फिर वह बच्चे हों या बड़े सभी इससे प्रभावित हो रहे हैं। जिन चीजों को लोग देखते हैं, उसकी उन्हें आदत पड़ जाती है। फिर उस तरह की हरकत करने में उन्हें कोई संकोच और डर नहीं रह जाता है।’
प्रो. गोयल ने कहा, ‘टीवी कार्यक्रम, वेब सीरीज और फिल्मों ने इंसान के दिमाग पर काफी असर डाला है। आप खुद इसे अनुभव कर सकते हैं। कई बार आप वो करने की कोशिश करते हैं, जो आपने फिल्मों या सीरियल में देखा होता है। इसके अलावा यूट्यूब और इंटरनेट पर तमाम तरह के भड़काऊ और लोगों को उग्र बनाने वाले कंटेंट मौजूद हैं। जहां तक आसानी से लोगों की पहुंच हो चुकी है। एक क्लिक पर ही लोग बम बनाने से लेकर हत्या करने तक के टिप्स सर्च कर लेते हैं। हैरानी की बात ये है कि ये सब कंटेंट एक्सपर्ट की तरफ से इंटरनेट पर उपलब्ध कराया जाता है।’
उन्होंने दिल्ली एनसीआर और अन्य मेट्रोपोलिटन शहरों में बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति के लिए प्रदूषण को भी जिम्मेदार माना है। प्रो. गोयल कहते हैं कि प्रदूषण का असर इंसान के दिमाग पर पड़ता जा रहा है। इससे इंसान चिड़चिड़ा होता जा रहा है। लोगों में गुस्सा तेजी से पनपता है। हर छोटी बात पर लोग आपा खो देते हैं। प्रदूषण के चलते ऐसे मामलों में 70 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में जब लोग गुस्सा होते हैं तो वह कुछ भी करने पर उतारू हो जाते हैं।
इससे बचने के लिए क्या करें?
प्रो. गोयल के अनुसार, इससे बचने का सिर्फ यही उपाय है कि लोगों को अपने दिनचर्या में बदलाव लाना होगा। वर्चुअल दुनिया से बाहर निकलकर सामाजिक दायरे में शामिल होना होगा। लोगों को दिमाग शांत रखने के लिए योग और ध्यान करने की जरूरत है। इससे स्वास्थ्य तो सही होगा कि साथ में मानसिक तनाव भी कम होगा। ज्यादा मोबाइल, टीवी, लैपटॉप से दूर रहें। लगातार इससे निकलने वाले कण आपके दिमाग पर सीधा असर डालते हैं। जो आपकी सेहत के लिए नुकसानदेह तो है, साथ में मानसिक तौर पर भी आप कमजोर होते जाते हैं।
दिल्ली में क्राइम का रिकॉर्ड भी देख लीजिए
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 में दिल्ली के अंदर गंभीर धाराओं में दो लाख 89 हजार 45 मामले दर्ज हुए हैं। इनमें हत्या, हत्या की कोशिश, रेप, रेप की कोशिश जैसे मामले सबसे ज्यादा हैं। दिल्ली से ही सटा गाजियाबाद भी क्राइम के मामले में देश के टॉप-10 शहरों में शामिल है। यहां पिछले साल 12 हजार 259 मामले आईपीसी के तहत दर्ज हुए हैं। इसी तरह गुरुग्राम, नोएडा जैसे शहरों में भी खूब आपराधिक घटनाएं होती हैं।