
वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…
सोने पे सुहागा सीएम के साथ ‘डिप्टी’ भी
मेरी मां। जब मेरे बेटे बहुत छोटे थे तो स्वाभाविक रूप् से उसका प्यार छलकता था पोतों पर। हर रोज वही लाड़… हर रोज के सेम टू सेम डायलाॅग। उनमें से एक डायलाॅग ये भी होता था ‘मेरा राजा बेटा, डाॅक्टर बनेगा, इंजीनियर बनेगा, कलेक्टर बनेगा.. और कलेेेक्टर के बाद सबसे प्रभावशाली कि ‘डिप्टी कलेक्टर बनेगा’। कलेक्टर बनेगा फिर डिप्टी कलेक्टर बनेगा। गोया कि डिप्टी कलेक्टर कलेक्टर से बड़ा होता है। क्यों न हो कलेक्टर तो सिर्फ कलेक्टर है और डिप्टी कलेक्टर में तो कलेक्टर के साथ में डिप्टी भी लगा है। कुछ एड होने से ताकत बढ़ती है न। यानि ताकत बढ़ गयी न।
प्रदेश के वरिष्ठतम् और अपनी साफगोई, ईमानदारी के लिये विख्यात कांग्रेसी नेता टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनाया गया है। गांव में जाकर ये दुहाई दी जा सकेगी कि देखो, सिंहदेव सीएम, सीएम करते थे। हमने तो उन्हें डायरेक्ट ‘डिप्टी सीएम’ बना दिया। देर आये दुरूस्त आए या कहा जाएगा कि सब्र का फल मीठा होता है। भूपेश बघेल को तो सोनिया गांधी ने खाली सीएम ही बनाया था, पर सिंहदेव को तो डिप्टी सीएम बना दिया। सिंहदेव के साथ तो डिप्टी भी लगा दिया।
सियासी जीवन का सर्वोच्च अवसर

सिंहदेव समर्थक भी कदाचित् यही सोचकर खुश हैं कि अब अंत समय में यानि सत्ता के अंत समय मे जो मिला वो ठीक। ध्यान लगाने वाले कहते हैं कि चाहे घंटा भर ध्यान लगा रहे पर कोई एक आध मिनट ही असल ध्यान होता है जिसमे इंसान अंदर तक घुस जाता है। जब उसका वास्तव में अध्यात्मिक साक्षात्कार होता है। अंतर्मन में डूब जाता है। सिंहदेव को भी अंतिम स्वर्णकाल मिला है। उनकी इच्छा का पूरा किया है हाईकमान और बघेल ने। कुछ महीनों के लिये (अगर पुनः सरकार नहीं बनती तो) ही सही आॅफिस के बाहर उप मुख्यमंत्री तो लिखा रहेगा और घर के बाहर जीवन भर। कदाचित् यही उनके सियासी जीवन के गहन ध्यान की अवस्था है।
एक अच्छा निर्णय
दोनों के लिये
काफी लंबे समय से डीएस सिंहदेव क्षुब्ध थे। दरअसल जैसे ही कांग्रेस की सरकार बनी थी। सीएम बनने के लिये भूपेश बघेल की स्वाभाविक दावेदारी के साथ तीन नाम और थे। मध्यप्रदेश सरकार मे गृहमंत्री रहे चरणदास महन्त, ताम्रध्वज साहू और टीएस सिंहदेव। अब चूंकि बघेल और सिंहदेव ने पार्टी के लिये जबर्दस्त काम किया था और दोनों को वीरू और जय की जोड़ी कहा जाता था तो इनका नाम सबसे उपर था। तब इस प्रतियोगिता मे दोनों ही नंबर वन पर दिखे। असमंजस की इस स्थिति में लंबी जद्दोजेहद के बाद दोनों को ढाई-ढाई साल के लिये सीएम पर से नवाजा जाएगा ये तय किया गया, ऐसी चर्चा है और सिंहदेव का दावा है। लेकिन ढाई साल के बाद के दावेदार सिंहदेव को तब घोर निराशा हुई जब सीएम बघेल ने इस समझौत ेसे इंकार कर दिया और हाईकमान ने भी मुंह मोड़ दिया।
बेहद आहत सिंहदेव ने तब कांग्रेस छोड़कर भाजपा में प्रवेश की बात तो नहीं की लेकिन बगावत के संकेत अवश्य दिये। उनके समधि भाजपा के सांसद हैं और उनका सीधा आफर है और भतीजे को भाजपा में जाने से नहीं रोक सकंगे आदि… कई तरह की बातें थीं। उन्होंने बिना लाग लपेट के अपनी मंशा, निराशा, इरादे जाहिर किये ।तब भी कुछ हासिल नहीं हुआ। लेकिन अब जबकि प्रदेश में कांटे की टक्कर है और अपनी स्थिति को बेहद सुदृढ़ न पाकर भाजपा भी सारे तरीके अपना रही है, कांगे्रस किसी भी दमदार वरिष्ठ नेता की उपेक्षा से उत्पन्न बगावत की रिस्क लेने के मूड में नहीं लग रही है। सिंहदेव राजा हैं और इच्छानुसार बनाने-बिगाड़ने का दम रखते हैं। एक तरह से अच्छा ही हुआ कि कांग्रेस का संकट टल गया और उनके आहत मन को राहत मिली।

