वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी….
कोई माने या न माने पर ये बात सच है कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के बीच ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री बनने के बारे में हुए (या नहीं हुए) समझौते की चर्चा पिछले दो सालों से होती रही है। उस समय से लेकर आज तक सिंहदेव के प्रदर्शन, बयान और बाॅडी लैंग्वेज से ये साफ संकेत मिलता था कि उन्हें ढाई साल बाद मुख्यमंत्री बनाए जाने का आश्वासन मिला था।
लेकिन सियासत में वो आश्वासन की क्या जो पूरा कर दिया जाए। यानि सियासत का वचन पानी पर लकीर होता है। जितनी पानी पर लकीर की स्थिरता होती है उतनी ही लाईफ सियासी वचन की होती है।
भावुक नेता की अकुलाहट
लंबे समय तक सिंहदेव ने इस बात को नहीं छिपाया कि वे ढाई साल बाद सीएम बनने को आतुर बैठे थे। काफी हाथ-पैर मारे, काफी चेतावनियां भी दीं।
ये अहसास भी कराया कि इस वादा खिलाफी से वे निष्क्रिय हो सकते हैं। उनका भतीजा बागी होकर भाजपा को फायदा पहंुचा सकता है। भतीजे की आड़ में वे अपनी चेतावनी को दिखा रहे थे।लेकिन हाईकमान चूंकि बघेल से बेहद खुश था और है और छत्तीसगढ़ मे कोई नया प्रयोग करना बेहद खतरनाक हो सकता है, लिहाजा कोई रिस्क न लेते हुए बघेल को ही कंटीन्यू किया। निस्संदेह बघेल कामयाब भी कहें जाएंगे।
मन मसोस कर बैठे सिंहदेव निश्चित रूप् से कुछ न कुछ ऐसा करते कि जिससे कांग्रेस पार्टी को हानि हो सकती थी। इस पूरे घटनाक्रम मे भावुक सिंहदेव बेहद आहत हुए। ये सच्चाई वरिष्ठ कांग्रेसियों ने भी भांप ली और इस आहत भावना को सहलाने के लिये ऐन चुनाव से पहले उन्हें डिप्टी सीएम यानि उप मुख्यमंत्री बना दिया गया। दोनों नेताओं को एक समय जो नाम दिया गया था वही दोहराने की कोशिश की गयी यानि वीरू और जय की जोड़ी।
दोनों के हंसते-खिलखिलाते चेहरे प्रदेश को रास आने लगे हैं।
उपर दिखता शांत जल
नीचे संभव है बड़ी हलचल
लेकिन इस मक्खन के दौर मे एकाएक जब सिंहदेव ने घोषणा पत्र बनाने की जवाबदारी से इन्कार कर दिया तो कांग्रेस प्रेमियों को झटका लगा। हालांकि ये बात सिंहदेव पहले भी कह चुके हैं कि घोषणा पत्र (पिछले) के हिसाब से काम नहीं हुआ है और इस बात के लिये उन्होंने अपनी ही सरकार के प्रति नाखुशी जाहिर कर दी थी।पर अब ऐन चुनाव के मौके पर इस जवाबदारी से इन्कार करना कांग्रेस को चैकन्ना कर गया। बता दें कि पिछले 2018 के घोषणा पत्र में इनकी अहम् भागीदारी थी।
इसके अलावा कुछ समय पूर्व उन्होंने एक सच्चाई बयान की थी कि मैं प्रशासनिक व्यवस्था से संतुष्ट नहीं हूं। बिल्कुल संतुष्ट नहीं हूं। प्रशासन को जनता के लिये जवाबदार होना चाहिए ,तो क्या इस इन्कार और विचार से ये समझा जाए कि सिंहदेव का मन अभी खुश नहीं हुआ है। उन्होंने अब प्रशासन का चुस्त दुरूस्त करने का प्रयास किया तब तो ठीक है
लेकिन अगर उनकी नाराजगी, असंतोष अंदर ही अंदर कायम है और उनके मिल रहे सम्मान पर उनकी हुई उपेक्षा से उपजा क्षोभ भारी साबित हुआ और वे चुनाव से पूर्व कोई बड़ा चैंकाने वाला कदम उठा लें तो कांग्रेस को नुकसान हो सकता है ?