खेल डेस्क -गुवाहाटी टेस्ट में टीम इंडिया का प्रदर्शन हर मोर्चे पर बिखरा नजर आया. जिस पिच पर दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाजों ने तकनीक, धैर्य और अनुशासन के दम पर बड़ा स्कोर खड़ा किया, वहीं भारतीय बल्लेबाज दूसरी पारी में भी संघर्ष करते दिखे. 549 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए भारत ने चौथे दिन तक 27/2 रन बनाए और मैच के साथ-साथ सीरीज भी हाथ से निकलती दिख रही है.
गुवाहाटी के बारसापारा स्टेडियम में खेला जा रहा दूसरा टेस्ट भारतीय क्रिकेट के लिए सिर्फ एक मैच नहीं, बल्कि एक कड़वा आईना बन गया है. यह वह आईना है, जिसमें टीम इंडिया अपनी बिखरती तकनीक, कमजोर मानसिकता, गलत रणनीति और घर में भी लड़खड़ाती तैयारी साफ देख सकती है. दक्षिण अफ्रीका ने उसी पिच पर दिखा दिया.कि टेस्ट क्रिकेट सिर्फ नाम के आधार पर नहीं, बल्कि कौशल और जज्बे के आधार पर जीता जाता है.
पहले से ही सीरीज में पिछड़ता भारत गुवाहाटी टेस्ट में 549 रनों के असंभव लक्ष्य का पीछा कर रहा है. चौथे दिन स्टंप्स तक भारतीय टीम ने 15.5 ओवरों में दो विकेट पर मात्र 27 रन बनाए और लक्ष्य अब भी 522 रन दूर है. लेकिन असली समस्या यह नहीं कि लक्ष्य बड़ा है- समस्या यह है कि भारतीय बल्लेबाजों में उसका पीछा.
करने की तैयारी या हिम्मत कहीं नजर नहीं आती.
दक्षिण अफ्रीका की टीम ने इस टेस्ट में वही किया जो भारत को करना चाहिए था…
पहले गेंद की उछाल को पढ़ा, फिर पिच के व्यवहार को समझा और उसके बाद जोखिम और संयम का संतुलन बनाकर शीर्ष स्तर की बल्लेबाजी की. इस पिच की जो ”बल्लेबाजी के अनुकूल प्रवृत्ति’ थी, दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाजों ने उसका पूरा लाभ उठाया. वहीं वही पिच भारतीय बल्लेबाजों के सामने किसी रहस्य से भरे जाल की तरह साबित हुई.
इससे बड़ा सबूत क्या होगा कि जिस विकेट पर विपक्ष 400+ का स्कोर खुशी-खुशी बनाता है, उसी विकेट पर भारत दो पारियों में तकनीकी खामियों का ढेर लगा देता है?
भारतीय बल्लेबाजों की समस्याएं बेहद गहरी होती जा रहीं
तकनीक की कमी, फुटवर्क का अभाव, गेंद की लाइन पर भरोसे की कमी और हालात को पढ़ने की क्षमता लगभग ना के बराबर. ऐसा लगता है जैसे भारत अब घर में रन बनाने का ‘आदतन आराम’ ले चुका है और जैसे ही पिच थोड़ी अलग चलने लगे, टीम की संरचना ढहने लगती है.
दूसरी ओर भारतीय गेंदबाज भी बेहद फीके रहे. ना वो लाइन-लेंथ पकड़ सके, ना पिच का मिजाज समझ सके और ना ही विपक्षी बल्लेबाजों पर दबाव बना सके. दक्षिण अफ्रीक.को रन बनाने के लिए किसी जोखिम की जरूरत नहीं पड़ी. भारत ने ही रास्ता आसान कर दिया.
सीरीज लगभग खत्म… मैच बचाना भी मुश्किल
अब सवाल जीत का नहीं है, सवाल यह है कि क्या भारत यह मैच बचा पाएगा? उत्तर स्पष्ट है- बहुत मुश्किल. ..सीरीज पहले ही हाथ से फिसल चुकी है. गुवाहाटी ने इसे .बस मुहर लगा दी है. घर में भी शर्मनाक स्थिति यानी चमक-दमक ने काम नहीं किया.यह विडंबना है कि दुनिया की सबसे अमीर बोर्ड, सबसे चमकदार लीग, सबसे बड़ी फैन…फॉलोइंग और विश्वस्तरीय सुविधाओं के बावजूद भारतीय टीम के पास न तो तकनीक का आधार बचा है और न हालात को समझने की क्षमता.शोहरत रही, ब्रांड वैल्यू रही, लेकिन टेस्ट क्रिकेट में जो सबसे जरूरी… धैर्य, एकाग्रता और जुझारूपन… वही टीम इंडिया से लगातार गायब होता जा रहा है.
सिंहासन का सपना… पर परीक्षा में बार-बार फेल
भारत विश्व क्रिकेट पर राज करना चाहता है, लेकिन सिंहासन वही हासिल करता है जो परिस्थितियों का सम्मान करना जानता हो. दक्षिण अफ्रीका ने किसी चमत्कार से नहीं- बल्कि तकनीक, अनुशासन और साहस के दम पर टेस्ट चैम्पियन बनने का गौरव हासिल किया है. दरअसल, वह विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप (

