Tuesday, July 8, 2025
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छत्तीसगढ़ भाजपा:उम्मीदवारों की लिस्ट पर रस्साकशी जारी .ऊपर से शांति.अंदर ही अंदर खींचतान और अशांति

इंदर कोटवानी ..

संभावित उम्मीदवारों के नाम को लेकर भाजपा में जो विरोधाभास सामने आया है, इससे निश्चित रूप से पार्टी को आगामी विधान सभा चुनाव में काफी नुकसान उठाना पड़ सकता हैl लगातार 15 सालों तक सत्ता के नशे में मदमस्त रही.भाजपा 2018 का विधान सभा चुनाव हारने के बाद से पिछले 5 सालों में काफी कमजोर हुई है,जबकि कांग्रेस अपेक्षा से कहीं ज्यादा मजबूत होकर उभरी है…।भाजपा ने जब छत्तीसगढ़ प्रदेश काअध्यक्ष बदला और अरुण साव को पार्टी का नया मुखिया बनाया गया  तो यह उम्मीद की जा रही थी कि पार्टी विधान सभा चुनाव के पहले  मजबूत होकर उभरेगी.और 2023 के विधानसभा चुनाव में मजबूती और पूरे दमखम के साथ नए पुराने चेहरों को लेकर चुनावी मैदान में दिखेगी. लेकिन ऐसा होता दिख नही रहा। दरअसल अरुण साव पार्टी की कमान संभालते ही उन्हीं नेताओं के मकड जाल में फस गए जिन्होंने पार्टी की बुरी गति कर रखी थी..

जबकि साव के अध्यक्ष बनने के बाद कार्यकर्ता उत्साहित थे.उनमे एक आस जगी थी  कि नए प्रदेश अध्यक्ष के आने से पार्टी में समर्पित और निष्ठावान कार्यकर्ताओं की न केवल पार्टी में पूछपरख बढ़ जाएगी,बल्कि पार्टी में सम्मान भी मिलेगा    लेकिन.ऐसा हुआ नही.कार्यकर्ताओं के अरमान आंसुओं में बहकर रह गए,और वे फिर से अपने आप को ठगे से महसूस करने लगे.अरुण साव के आने के बाद पार्टी की अंदरूनी लड़ाई शांत तो नहीं हो सकी उल्टा हुआ यू की अंदर की लड़ाई बाहर तक आ गई..

पूर्व अध्यक्षों की तरह पार्टी की बागडोर मिलते ही साव उन नेताओं की चौकड़ी में शामिल हो गए..और उनकी चुपड़ी-चुपड़ी बातों में फंसकर स्वयं को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का सपना देखने लगे।दरअसल ओम माथुर के छत्तीसगढ़ प्रभारी बनने के बाद उनके द्वारा कुछ ऐसी बातें कही गई जिससे लगभग स्पष्ट हो गया कि 2023 का विधान सभा चुनाव रमन सिंह के नेतृत्व में नहीं लड़ा जाएगा।इस तरह के बयानों के सामने आने के बाद अरुण साव पार्टी की लकीर को बड़ा करने के बजाय,उन नेताओं के साथ मिलकर अपनी लकीर को ही बड़ा करना शुरू कर दिया.ओममाथुर भले ही तेज तर्रार नेता माने जाते है.लेकिन छत्तीसगढ़ की राजनीति को समझने के लिए उन्हें छत्तीसगढ़ी नेताओं की जरूरत थी,ताकि उनसे फीडबैक लेकर वे आगे बढ़ सके..छत्तीसगढ़ भाजपा के संगठन मंत्री पवन साय.अजय जामवाल.नितिन नवीन सहित कई ऐसे कोई दिग्गज नेता पहले ही मौजूद थे,जिन्होंने प्रदेश में भाजपा की जीत का जश्न तो देखा है. हार का गम भी सहन किया है..|

संगठन मंत्री हो या फिर संगठन से जुड़े और बड़े नेता हो, वे तो चाहेंगे ही कि उनके खास और चहेतों को टिकट मिले.    और वे टिकट के लिए प्रदेश प्रभारी माथुर को फीडबैक भी अच्छा ही देगे. फिर चाहे प्रत्याशी हार जाए या जीत कर सरकार बना ले.|इससे इन संगठन के क्षत्रपो को कोई फर्क नहीं पड़ेगा.हार गए तो उसका ठीकरा माथुर पर फूटेगा,जीते तो इनके द्वरा दिए गाए फीडबैक कि सराहना होगी,दूसरी तरफ हारने के बाद भी कम से कम वे प्रत्याशी तो इन संगठन   नेताओ के तो खास बने रहगे ही और हमेशा इन सभी का दंडवत प्रणाम करते रहेगे.इसी तरह जीतने वाले भी हमेशा  आशीर्वाद लेते रहेंगे..

दूसरी तरफ कार्यकर्ता इस बात को लेकर असमंजस में है,आखिर वे कब तक पार्टी मैं रहकर दरी उठाते रहेंगे .और निष्ठा के साथ काम करते रहेंगे..कार्यकर्ताओ का कहना है कि भाजपा के लिए हमने समर्पण भावना से काम किया है,जब कोई व्यक्ति भाजपा का सदस्य बनने में डरता था, तब भी. खुलकर पार्टी के लिए काम किया, लेकिन जब पार्टी के अच्छे दिन आए तो उनको किनारे कर दिया गया.अब तो पार्टी में सब कुछ बदलता जा रहा है ,पार्टी में उन्हीं की कदर हो रही है जो दूसरी पार्टी छोड़कर भाजपा में प्रवेश कर रहे हैं.। इतना ही नहीं पार्टी ऐसे पैराशूट लैंडिंग वाले नेताओं को टिकट देकर चुनावी दंगल में उतर रही है।जिनका कोई अस्तित्व नही है ..यही कारण है कि पार्टी को आज , अपने कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ रहा है..साढ़े 4 साल तक प्रदेश में सत्ता का सुख भोगने के बाद जब चुनाव आया तो  भाजपा प्रवेश कर पार्टी के बड़े नेता बन गए,जबकि यही नेता काग्रेस में रहकर न केवल भाजपा को गलिया देते थे,भाजपा कार्यकर्ताओ को फूटी आख से भी देखना पसंद नही करते थे,लेकिन टिकिट के लिए ये पंजा छाप भाजपाई पार्टी की जय जयकार करतेऔर नेताओ को खुश करने जिंदाबाद नारे लगते  फिर रहे है, ऐसे नेताओं से भाजपा कार्यकर्ता अपने आपको कैसे अर्जेस्ट करेगे..। कार्यकर्ता से विधायक सांसद और मंत्री बने नेता जो अब अपने आप को शहंशाह समझने लगे हैं और अपने मनमर्जी से टिकट का वितरण कर रहे हैं. शायद उन्हें भी यह मालूम है  की जिस तरह से रेल की दो पटरिया साथ में रहने के बाद भी कभी,एक दुसरे के साथ मिल नहीं पाती..वैसे में अन्य पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए नेताओं की भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच कैसे पटरी मिल पाएगी,

राजधानी से जुड़े विधान सभा बलौदा बाजार, आरंग.धरसीवा.राजिम.सहित अन्य विधानसभा में जिस प्रकार संभावित प्रत्याशियों को नाम को लेकर भाजपा कार्यकर्ता सड़क पर उतरे हैं यह भाजपा के लिए खतरे की घंटी मानी जा सकती है.. चुनाव में टिकट वितरण के बाद हर बार कार्यकर्ता प्रत्याशियों के चयन को लेकर विरोध जताते रहे हैं .लेकिन इस बार जो विरोध हो रहा है उसे पर काबू नहीं किया गया तो..पार्टी फिर से सत्ता से दूर हो जाएगी..

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