Saturday, October 25, 2025
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छिंदवाड़ा में 9 बच्चों की मौत से मचा हड़कंप, सवालों के बीच स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक ने जारी किया एडवाइजरी

छिंदवाड़ा-मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के परासिया ब्लॉक में 9 मासूम बच्चों की संदिग्ध मौतों ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। मामूली बुखार से शुरू हुआ यह मामला अब खौफ और अनगिनत सवालों में तब्दील हो चुका है। इन बच्चों को बुखार और खांसी की शिकायत के बाद स्थानीय डॉक्टरों ने कोल्ड्रिफ सिरप और नेक्सट्रॉस डीएस जैसी दवाएं दी थीं, जिसके बाद उनकी तबीयत बिगड़ती गई। कुछ ही दिनों में एक-एक कर 9 बच्चों की मौत हो गई। इन घटनाओं के बाद पूरे इलाके में डर का माहौल है, वहीं स्वास्थ्य महकमे और प्रशासन के बयानों में गंभीर विरोधाभास देखने को मिल रहा है।

इन मौतों के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य सेवाओं की महानिदेशक ने एक सख्त एडवाइजरी जारी की है, जिसमें साफ कहा गया है कि दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खांसी-जुकाम की दवाएं न दी जाएं और न लिखी जाएं। 5 साल तक के बच्चों को भी ऐसी दवाएं बहुत सावधानी और डॉक्टर की निगरानी में दी जानी चाहिए। एडवाइजरी में मल्टीपल ड्रग्स वाली कफ सिरप से बचने की बात कही गई है, खासकर जब तक डॉक्टर की स्पष्ट सलाह न हो। यह एडवाइजरी ऐसे समय आई है जब परासिया में 9 मासूमों की जान जा चुकी है और उनके परिजनों को अब तक न तो न्याय मिला है और न ही कोई स्पष्ट जवाब।

इन सभी बच्चों को स्थानीय डॉक्टर डॉ. प्रवीण सोनी के निजी क्लीनिक से इलाज मिला था। परिजन बताते हैं कि बच्चों को बुखार आने के बाद डॉक्टर ने दवाएं दीं, जिनमें से कई को कफ सिरप और इंजेक्शन भी दिया गया। दवा देने के बाद बच्चों को उल्टी, पेशाब रुकने, और कमजोरी जैसे लक्षण दिखाई दिए। हालत बिगड़ने पर परिजन उन्हें छिंदवाड़ा और फिर नागपुर के बड़े अस्पतालों में ले गए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। रीनल बायोप्सी रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि बच्चों की किडनी में टॉक्सिक इंफेक्शन था, जिससे उनकी मौत हुई।

स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ल का कहना है कि अब तक जो सैंपल जांचे गए हैं, उनमें कोई विषैला तत्व नहीं मिला है, वहीं स्थानीय SDM शुभम यादव ने स्पष्ट कहा कि बायोप्सी रिपोर्ट से किडनी इंफेक्शन की पुष्टि हुई है और इसके पीछे कफ सिरप में पाए गए हानिकारक रसायन जिम्मेदार हो सकते हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अधिकारी डॉ. प्रभाकर तिवारी का कहना है कि इन दवाओं में डायथिलीन ग्लायकॉल (DEG) नामक इंडस्ट्रियल सॉल्वेंट हो सकता है, जो पहले भी गाम्बिया जैसी जगहों पर बच्चों की मौत का कारण बन चुका है।

बता दें कि, अब तक 9 बच्चों की मौत हो चुकी है, लेकिन न तो किसी का पोस्टमॉर्टम हुआ, न ही कोई पुलिस केस दर्ज किया गया। सैंपलों की जांच जारी है, लेकिन नतीजे आने में देरी हो रही है।

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