वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…
आज राहुल गांधी के मोदी प्रकरण की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है। सुप्रीम कोर्ट मंे है तो आप समझ ही गये होंगे कि लोअर कोर्ट और हाईकोर्ट से राहुल के खिलाफ ही निर्णय रहा है तभी वे सुप्रीम कोर्ट की शरण में आए हैं।

कानून के जानकार बताते हैं और जीवन के जानकार यानि अनुभवी सयाने लोग पुष्टि करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट से आए निर्णयों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि राहूल को राहत मिलेगी |कदाचित सुप्रीम कोर्ट राहुल गांधी को मोदी प्रकरण से बाइज्जत बरी कर दें। सीनियर वकीलों को कहना है कि प्रारंभिक तौर पर ही ये मामला बनता ही नहीं है। ये जबर्दस्ती बनाया गया मामला है जो सुप्रीम कोर्ट में नहीं टिकेगा।
बहरहाल या तो सुप्रीम कोर्ट मामला खारिज कर सकता है या राहुल की सजा कम हो जाए और दो साल से कम करके एक दो महीने कर दें। यदि ऐसा हुआ तो निश्चित रूप् से राहुल गांधी को चुनाव में बेहद सहानुभूति मिलेगी। जो राहुल की लिये अच्छा होगा। ईधर ज्योतिष के आधार पर भी कहा गया है कि 4 अगस्त की सुनवाई में कोर्ट राहुल को राहत दे सकती है। राहुल के लिये अच्छी खबर आ सकती है।
सेवा के नाम पे मेवा
इसीलिये सियासत जानलेवा

स्वीडन
एक बार विधायक एक पेंशन, दो बार विधायक दो पेंशन, तीन बर विधायक तीन पेंशन, चार बार विधायक चार पेंशन यानि जितने बार विधायक उतनी बार का पेंशन। अर्थात् एक बार की पेंशन एक लाख है तो चार बार विधायक चुने गये तो चार लाख पेंशन मिलेगी। इस बीच यदि सांसद चुने गये तो उसकी भी पंेशन जुड़ जाएगी। और भत्ते और अन्य सुविधाएं अलग। और फिर सारी वीआईपी सुविधाएं।
समझ गये न नेता बनकर लूटने के कितने बेशर्म रास्ते हैं अपने यहां। तभी तो लोग नेता बनने को मरते हैं। और इसके लिये वक्त पड़ने पर मारते भी हैं। मारते हैं… अंर्तआत्मा की आवाज को, ईमान को, भगवान के भय को, रिश्तों को और तो और इंसान को भी… यानि इंसानी खून बहाने से भी पीछे नहीं हटते… । पर अब शायद सुधार हो। शायद आगे चलकर ये बेशर्म लूट बंद हो। चूंकि इस पर अंकुश का नुकसान मोदी के अपने लोगों को भी बड़े स्तर पर होगा इसलिये शायद यहां पर ‘मोदी है तो मुमकिन है’ का फार्मूला न चले। शायद इस मामले में मोदी की न चले।
हक की बात
हक की बात
प्रसिद्ध देश स्वीडन जो न सिर्फ धनी है बल्कि वहां पर शासन भी दुरूस्त है। क्या आप जानते हैं कि स्वीडन में सांसद, मंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री सभी बसों से चलते हैं। आम आदमी की तरह लाईन में लगकर हर काम करते हैं। यहां तक कि बिल पटाना हो या कहीं की टिकट लेनी हो तो भी, कोई विशेषाधिकार नहीं। और इसमें किसी को कोई शर्म नहीं।ये पढ़े-लिखे लोग न सिर्फ अपने अधिकार समझते हैं बल्कि अपने कर्तव्यों का पालन भी करते हैं। इसलिये दूसरों के हक की कदर भी करते हैं। अपने यहां तो एक बार नेता बन गये तो जीवन भर लाईन तोड़ने का, दूसरों का हक मारने का अधिकार मिल जाता है।