जम्मू कश्मीर के पहलगाम हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया है. इस हमले में 26 लोगों की जान चली गई और कई घायल हो गए. जो लोग हमले में बच के आए हैं वो लोग अपनी कहानी सुना रहे हैं. एक और कहानी एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की है. उन्होंने सोशल मीडिया साइट X पर अपनी कहानी साझा की है. उन्होंने अपने पोस्ट में आतंकवादी हमले की भयावहता को याद किया और बताया कि कैसे वह और उनका परिवार उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन बाल-बाल बच गए.उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके भाई, जो एक सेना अधिकारी हैं, ने लगभग 40 लोगों की जान बचाई.
प्रसन्ना कुमार भट ने X पर लिखा, है “पहलगाम की बदनाम बैसरन घाटी से एक और जीवित बचने की कहानी. हमने उस भयावहता से बचकर यह कहानी बताई जो केवल एक राक्षसी कृत्य के रूप में वर्णित की जा सकती है और स्वर्गीय सुंदरता को रक्त-लाल रंग से रंग दिया. भगवान की कृपा, भाग्य और एक सेना अधिकारी की त्वरित सोच ने न केवल हमारी जान बचाई बल्कि उस दिन 35-40 अन्य लोगों की जान भी बचाई.”….उन्होंने अपने पोस्ट में बताया कि पहले दो गोलियों की आवाज सुनते ही “एकदम सन्नाटा” छा गया क्योंकि हर कोई समझने की कोशिश कर रहा था कि क्या हुआ. कुछ ही पलों में उन्होंने और उनके परिवार ने दो शव देखे और उनके भाई ने “तुरंत समझ लिया कि यह एक आतंकवादी हमला है. कुछ ही पलों में, हर कोई घबराकर बाड़े के मैदान के प्रवेश द्वार की ओर भागने लगा.
उन्होंने आगे लिखा “तो ज्यादातर भीड़ भागने के लिए गेट की ओर भागी जहां पहले से ही आतंकवादी इंतजार कर रहे थे, जैसे भेड़ें बाघ की ओर भाग रही हों. हमने देखा कि एक आतंकवादी हमारी ओर आ रहा है. इसलिए हमने दूसरी दिशा में भागने का फैसला किया और सौभाग्य से हमें बाड़ के नीचे एक संकीर्ण रास्ता मिला और ज्यादातर लोग बाड़ के नीचे से फिसलकर दूसरी दिशा में भागने लगे.”
भट ने आगे कहा, “उनके भाई ने जल्दी से स्थिति का आकलन किया और अपने परिवार के साथ “35-40 पर्यटकों को विपरीत दिशा में मार्गदर्शन किया. उनके भाई ने लोगों को नीचे की दिशा में भागने का मार्गदर्शन किया ताकि उस जगह से दूर जा सकें जहां गोलीबारी हो रही थी. यह एक ढलान थी जहां पानी की धारा बह रही थी, इसलिए यह सीधे दृष्टि से कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान कर रही थी. कीचड़ वाली ढलान पर भागना बहुत फिसलन भरा था लेकिन कई लोग फिसल गए लेकिन जान बचाने के लिए भागने में कामयाब रहे.”
उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा, “हम एक घंटे तक गड्ढे में बैठे रहे, डरे हुए, निराश और सुरक्षा के लिए प्रार्थना कर रहे थे. हमें नहीं पता था कि हमें उसी जगह पर रहना चाहिए या किसी अज्ञात दिशा में भागना चाहिए. इस दौरान हम अपने छोटे बच्चों और माता-पिता के बारे में सोचते रहे जिन्हें हमने घर पर छोड़ दिया था और यह नहीं जानते थे कि यह कब खत्म होगा.”
उन्होंने आखिर में अपने पोस्ट में लिखा, “यह एक ऐसी याद बन गई जिसे मिटाया नहीं जा सकता. यह देखना दर्दनाक है कि हमारे देश में ऐसा हो रहा है. मैं प्रार्थना करता हूं कि किसी को भी अपने जीवन में इस तरह के आतंक का अनुभव न करना पड़े. हम उनकी आत्माओं के लिए प्रार्थना करते हैं और मुझे उम्मीद है कि भगवान उन्हें न्याय प्रदान करेंगे. अंत में मैं अपने भाई और पूरी भारतीय सेना का आभार व्यक्त करना चाहता हूं जिनकी वजह से हम इस घटना को व्यक्तिगत रूप से बताने और अपने परिवार के साथ वापस आने के लिए जीवित हैं.