स्कूल में किताबो को लेकर पोस्ट करने वाला शिक्षक निलंबित
धमतरी-छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के कुरूद ब्लॉक के ग्राम नारी में पदस्थ एक शिक्षक को स्कूल की हकीकत बताना महंगा पड़ गया। राज्योत्सव के जश्न के बीच शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलने वाले शिक्षक को जिला शिक्षा अधिकारी ने तत्काल निलंबित कर दिया। लेकिन जब हमारी टीम मौके पर पहुंची, तो सच कुछ और ही निकला। स्कूल में बच्चों के पास अब तक हिंदी की किताबें तक नहीं पहुँची हैं। जो स्कूल शिक्षा विभाग की लापरवाही और सिस्टम की हकीकत को बेनकाब करती है।
ये सच है की स्कुल खुलने 5 महीने बाद भी कुरूद ब्लॉक के ग्राम नारी की सरकारी नई प्राथमिक शाला में किताबों की भारी कमी से बच्चे जूझ रहे हैं। बच्चो को हिंदी विषय की एक भी नई किताब स्कूल को शिक्षा विभाग की ओर से अब तक नहीं मिली। बच्चे पुरानी किताबों के सहारे पढ़ने को मजबूर हैं। महज 8 पुरानी किताबें हैं, जिनसे तीन-तीन बच्चे मिलकर पढ़ते हैं। कई बच्चे बिना किताब के घर लौट जाते हैं। पढ़ाई के दौरान किताब को लेकर झगड़े की नौबत तक आ जाती है। ऐसे हालात में जब शिक्षक ने सच्चाई को अपने व्हाट्सऐप स्टेटस पर साझा किया, तो विभाग ने इसे अनुशासनहीनता मानते हुए तत्काल निलंबित कर दिया। शिक्षक ढालूराम साहू ने लिखा था कि बच्चों की शिक्षा व्यवस्था ठप्प है और हम राज्योत्सव मनाने चले हैं। हमारे जनप्रतिनिधियों को यह सब नहीं दिखता। जहाँ खाने-पीने की सुविधाएँ हों वहीं काम करते हैं। जब तक बच्चों को पूरा पुस्तक नहीं मिलेगी सहायक शिक्षक से लेकर कलेक्टर और शिक्षा मंत्री तक का वेतन रोक देना चाहिए।
जिला शिक्षा अधिकारी अभय कुमार जायसवाल ने तुरंत शिक्षक को निलंबित कर दिया। आदेश में कहा गया कि शिक्षक का यह कृत्य छत्तीसगढ़ सिविल सेवा आचरण नियम, 1965 के प्रतिकूल है। IBC24 की टीम ने जिला शिक्षा अधिकारी से जब सवाल किया तो उन्होंने दावा किया कि स्कूल में पुस्तकें वितरित हो चुकी हैं। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कह रही है। बच्चे खुद बता रहे हैं कि अब तक हिंदी की नई किताबें नहीं मिली हैं। एक ओर राज्य सरकार राज्योत्सव के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, वहीं दूसरी ओर गांव के स्कूलों में बच्चे बिना किताबों के पढ़ने को मजबूर हैं। और जब कोई शिक्षक इस सच्चाई को सामने लाता है, तो सिस्टम उसे सस्पेंड कर देता है। अब बड़ा सवाल यह है क्या सच बोलना सिविल सेवा आचरण के खिलाफ है या सिस्टम की कमियों को छिपाना? क्या शिक्षा विभाग की यह चुप्पी बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं है?

