बात बेबाक.. इंदर कोटवानी (Indar Kotwani Tilda).. जनता जाम में फसी आपको क्या ? गड्ढे में गिर रही आपको क्या ? मेहनत की कमाई चोर ले जा रहे हैं आपको क्या ?हम धूल में सने जा रहे आपको क्या? कचरे के ढेर हमारे घर चौराहे सड़कों पर बढ़ते जा रहे आपको क्या ?आप मौज मनांइए। हम झेल रहे हैं। हमें आदत हो गई है। ये सब सहने की।अब जरूरत भी नहीं समझते.आपको कहने की। आपको फर्क भी क्या पड़ता है ? कल परिवर्तन यात्रा में फसे थे .कल दूसरी रेलिया में थामेंगे । सीएम के कहने के बाद भी यहां गड्ढे कहां भरगे ? देखिए निकलकर शहर में। हर सड़क छलनी हो रही है। जनता इसमें उछलकूद कर रही है। गड्ढो की धूल शाम को एक गुब्बार बनाती है। आंखें मिचिआते हुए. जनता उसमें भी गुजर जाती है।आपसे कुछ कहा… नहीं न…कहना ही नहीं है।
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आपको पता है जी चोरी को आप एक आंकड़ा मानते हो. उस आंकड़े में परिवारों का सब कुछ जा चुका होता है।लाख- डेढ़ लाख की जिस बाइक चोरी को कुछ नहीं समझते ना. उसे खरीदने में कई महीनो सालों तक पेट काटकर वक्त गुजरा गया होता है।.सोने के जो जेवर गायब हो जाते हैं ना।. वो बेटी की शादी. बहन के कन्यादान के सपने संजोकर रखे थे।मां की निशानी थी।. पिता का आशीर्वाद था।लेकिन क्या फर्क पड़ता है। यह सारी भावना कागजों में समेटी पड़ी रह जाती है। और अगले दिन फिर एक चोरी की खबर आ जाती है।मेहनत की कमाई से भारत स्वच्छता कर भी हमें गंदगी से मुक्त नहीं करवा पा रहा है.
कोई शहर सफाई में सितारे सजा रहा है।और एक हमारा शहर गंदगी से पटी गलियों में आंख खोलता है, और वैसे ही गंदे बाजरो-सड़कों को देख सो जाता है।,किसे कहे ?आप तो सुनेंगे नहीं ।अरे अब चुनाव आ गए हैं।दिखावे के लिए ही सही. कुछ तो सुधारो ।शिकायतों की लंबी फेहरिस्त में से कुछ लाइन तो काटो । सौगातो के पहाड़ की ओंट में देखो… हम मूलभूत जरूरत के लिए तरस रहे हैं ।कुछ तो रहम खाओ।गड्ढे- जिंदगी- जाम और चोरियों में अब निजात दिलाओ..।
आखिर कब तक भ्रष्टाचार का दंश शहर की जनता झेलते रहेगी..मैं तो यही कहूंगा.. विधायक जी जिस जनता के वोट से आपको कुर्सी और श्रीमान कि उपाधि मिली है।.पार्षद जीआप भी सुन ले जिन वार्ड वासियों के मिले वोटो से चुनाव जीत कर श्रीमान बने हैं.प्रथम नागरिक बनने कि उपाधि मिली है” उनसे इतना भी मुंह मत मोड़ो.वरना जो वोटर,अपना वोट देकर कुर्सी पर बिठाने कि ताकत रखते हैं,उन्हें कुर्सी से उतरना भी आता है..अभी भी वक्त है उठो, भ्रष्टाचारियों को मुंहतोड़ जवाब दो.. अन्यथा एक महीने पहले 50 लाख रुपए से बनी डामर की सड़क जो बारिश में गढङो में तब्दील हो गई है और सड़क में बिछाई गई गिट्टी सड़क पर तीतर-बीतर होकर सड़क पर ही बिखरी पड़ी हुई है..वैसे ही हाल तुम्हारा होना है, घर से बाहर निकाल कर श्रीमान बनाने वाली जनता घर में ही बिठाकर रख देगी…।और कहेगी मौज बनाइए हमको क्या !घरों के सामने पड़ी गंदगी.. नालियों से उड़ने वाली बदबू..और बहुत कुछ सहा है हमने.. अब हमको तुमसे क्या..? Indar Kotwani Tilda

