शहर के बनिया पारा में शुभाषचंद केसरवानी के द्वारा अयोजित 9 दिवसीय श्री शिव महापुराण कथा अमृत वर्षा के दौरान पांचवे दिन शुक्रवार को कथा में आचार्य नरेंद्र रामदास ने जीवन में राम नाम स्मरण का महत्व समझाते हुए शिव-पार्वती विवाह का प्रसंग सुनाया। इससे पूर्व भगवान शिव -माता पार्वती और शिव महापुराण की विधिवत पूजा- अर्चना करने के बाद कथा शुरू हुई। इस दौरान सजीव झांकियां भी सजाई गई। आचार्य ने प्रवचन देते हुए कहा कि वर्तमान दौर में ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जो दुखी न हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता है कि हम भगवान का स्मरण करना ही छोड़ दें। जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे। भगवान का नाम स्मरण करने मात्र से हर एक विषम परिस्थिति को पार किया जा सकता है। इसलिए हम सभी को भगवान के नाम का स्मरण करना चाहिए।
कथा वाचक ने शिव-माता पार्वती विवाह की कथा सुनाते हुए कहा कि माता पार्वती ने हिमालय राजा के यहां पर जन्म लिया था। पार्वती बचपन से ही भगवान भोलेनाथ को मानती थी। इसीलिए भोलेनाथ से माता पार्वती का विवाह हुआ।आचार्य जी ने कथा का विस्तार से वर्णन करते हुए बताया कि सती मरण के पश्चात शिवजी वैराग्य हो गए.. वे दिन हिमालय के पास आए.. और साधना करने हेतु भूमि की मांग करने राजा के पास पहुंचे .. अनुमति मिलने के बाद भगवान शंकर वहां पर साधना करने बैठ गए जहां पर गौरी को उनकी सेवा में भेजा गया बाद में पार्वती मैया नारद के कहने अनुसार गुरु मंत्र लेकर उन्होंने दीक्षा लेकर श्री ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप किया.. पार्वती जी कि लगातार शिव आराधना वो उसकी भक्ति को देखते हुए स्वयं भगवान विष्णु ब्रह्मा ने शिव से प्रार्थना करते हुए उस कन्या से विवाह करने की बात कही यद्यपि शिवजी विवाह नहीं करना चाहते थे लेकिन गुरु पिता और भगवान के निवेदन को स्वीकार करते हुए शिव पार्वती से विवाह कर लिया|शिव विवाह प्रसंग का वर्णन सुन मंत्रमुग्ध हो गए।कहा कि जीवन रूपी नैया को पार करने के लिए राम नाम ही एक मात्र सहारा है।
कथा के बीच सुंदर-सुंदर भजन से ‘शिव को ब्याहने चले’ ‘भोले की बारात चली सज धज चली’ सहित अन्य भजनों पर श्रद्धालुओं ने झूमकर नृत्य किया