तिल्दा नेवरा -नगर पालिका में भाजपा ने बड़ी जीत दर्ज की है. भाजपा ने ना सिर्फ अध्यक्ष पद पर कब्जा किया, बल्कि 22 वार्ड वाली नगर पालिका में बहुमत के साथ पार्टी के 12 पार्षद भी जीतकर पहुंचे हैं. इसका मतलब पालिका में उपाअध्यक्ष भी भाजपा का ही होगा.
भाजपा की इस बड़ी जीत और कांग्रेस की करारी हार के कारणों की समीक्षा करें तो कोई बहुत चमत्कारिक कारण सामने नहीं आते हैं. सियासत के वही परम्पगत फार्मूलों की वजह से तिल्दा नेवरा में भाजपा को सत्ता हासिल हुई है. लेकिन इस बार यदि भाजपा के विभीषण पार्टी के प्रत्याशियों को हराने का काम नहीं करते तो स्थिति कुछ और होती साथ ही शहर से कांग्रेस का सुपड़ा साफ हो जाता।
पिछले बार के नगर पालिका चुनाव में भी भाजपा के 13 पार्षद चुनाव जीतकर आए थे। लेकिन जब अध्यक्ष को चुनने की बारी आई तो भाजपा के जीते हुए पार्षदों ने अपने आप को कांग्रेस के हाथो बेच दिया।और पूर्ण बहुमत वाली भाजपा नगर पालिका में सत्ता से वंचित हो गई और मात्र 7 पार्षदों वाली कांग्रेस का अध्यक्ष चुनाव जीत गया,और कांग्रेस ने नगर सरकार की सत्ता हासिल कर ली ।पिछले चुनाव में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस भूपेश सरकार थी,अध्यक्ष को सीधे चुनने का अधिकार मतदाताओं को नहीं दिया गया था। अध्यक्ष को चुनने दायित्व पार्षदों को दिया गया था।
भाजपा के शहर संगठन में रहकर जिन नेताओं ने पार्षदों को कांग्रेस के पास बेचा था, आज भी संगठन में वही लोग पदों पर आसीन है। चुनाव के पहले अंधा बाते रेवड़ी अपने-अपने को दे की तर्ज पर पार्षदों के नामो की सूची जिला संगठन को भेजी गई थी । लेकिन जिले में जब सक्रिय और पुराने दमदार पार्षदों के नाम लिस्ट में नहीं देखे गए तो, उनके नाम जिले से जोड़कर पार्षद प्रत्याशियों की घोषणा की गई,
लेकिन शहर संगठन को जमीनी और जिताऊ प्रत्याशियों को टिकट देने की बात रास नहीं आई और स्थानीय संगठन में दखल रखने वाले तथाकथित विभीषणों ने दूसरा रास्ता निकाला और उनको हराने में लग गए। परिणाम यह हुआ कि जिन तीन चार प्रत्याशियों के नाम की घोषणा जिले से की गई थी उन सभी को स्थानीय संगठन के लोग हराने में कामयाब हो गए। साथ ही शहर की सरकार की सत्ता पर भी भाजपा ने कब्जा कर लिया। लेकिन ट्रिपल इंजन की सरकार में जितने डिब्बे लगने थे उतने नहीं लग पाए। और प्रदेश में डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद पिछले चुनाव की अपेक्षा इस चुनाव में पार्षदो की संख्याबढने कि बजाय घटकर 12 हो गई। इतना ही नहीं 13 महीने पहले विधानसभा में जीते विधायक वर्तमान में छत्तीसगढ़ शासन के मंत्री को जितने वोटो की लीड मिली थी, वह घटकर नगर पालिका चुनाव में आधे से भी कम हो गई और भाजपा अध्यक्ष मात्र 2500 वोटो से जितने में सफल हो पाई।
विधानसभा के बाद हुए लोकसभा चुनाव में बृजमोहन अग्रवाल को तिल्दा नेवरा शहर से कांग्रेस प्रत्याशी से लगभग 10 हजार से अधिक वोट मिले थे,यदि उस आंकड़े पर गौर करें तो इस बार हुए नगर पालिका चुनाव में भाजपा की बढ़त मात्र 25% ही रह गई है। यह भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं है। जबकिi पालिका चुनाव के दौरान मंत्री ने अपने चाहतों प्रत्याशियों के वार्डों में घर-घर जाकर जनसंपर्क किया था। सबसे ज्यादा उन्होंने भाजपा के सबसे मजबूत माने जाने वाले गुरु नानक वार्ड 5 में जाकर मतदाताओं से वोट मांगे थे. लेकिन उस वार्ड मैं भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ गया। और भाजपा का 25 सालों का मजबूत किला ढहक़र धराशाही हो गया।कांग्रेस पार्टी में भी कामावेश वैसा ही देखने को मिला, जो कांग्रेसी नेता प्रत्याशियों को निपटाने में लगे हुए थे उसी को मतदाताओं ने मत देकर निपटा दिया…