रामराज्य की कल्पना तो करते हैं पर राम जैसा आचरण, व्यवहार नहीं
समय आने पर जनता शीशा दिखा देती है इसलिए आत्मनिरीक्षण करिए
रायपुर। सत्संग मिले न मिले लेकिन कुसंग कभी न मिले इसका हमेशा ध्यान रखना। यदि कुसंग से बचना है तो हर समय भगवान को याद रखना। जहां छिपकर, बचकर, डरकर, यह देखकर कि कोई जान पहचान वाला देख तो नहीं रहा है जाना पड़े वह स्थान कुसंग है। जहां पर कु -जुड़े जैसे कुसंग, कुमति तो साथ छोड़ दीजिए और जहां सु-जुड़े जैसे सुसंग,सुमति जरूर जुडि़ए। जिसके जीवन के द्वार पर कुसंग बैठा हो वह घर कोपभवन ही तो बनेगा।
दीनदयाल उपाध्याय आडिटोरियम में श्रीराम कथा के चौथे दिन संत विजय कौशल महाराज ने बताया कि रामराज्य की कल्पना तो करते हैं पर राम का आचरण, व्यवहार को आत्मसात नहीं करते। जो राम राजतिलक की बात आने पर अपने छोटे भाईयों का राजकाज सौंपने की बात करते हैं, पर आज भाई-भाई में छोटी सी जमीन के बंटवारे को लेकर लड़ पड़ते हैं, कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाते हैं। इससे संपत्ति तो मिल जाती है पर शांति नहीं, शांति तो मिलती है त्याग से। राम जो कर रहे हैं उस दिशा, शील स्वभाव, आचरण-व्यवहार से आगे बढ़ते नहीं हैं और कल्पना करते हैं रामराज्य की, तो कैसे स्थापित होगा?