Friday, November 7, 2025
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मलबे भी ममता ज़िंदा रही ….दम तोड़ दिया पर बच्चे को सीने से जुदा न होने दिया

इंदर कोटवानी

बिलासपुर-मां ममता की वह छाव जिनके आंचल में सारी थकान मिट जाती है. दुनिया में भूचाल आ जाए पर मां अपने बच्चों को आंच तक नहीं आने देती मरते दम तक मां अपने बच्चों को सीने से लगा कर रखती है.. ममता की ऐसी दास्तान बिलासपुर में हुए भीषण रेल हादसे में देखने को मिली है जिसे सभी का कलेजा चीर कर रख दिया है .

रेल हादसे के मलबे से जब राहतकर्मी एक-एक कर लोगों को निकालने सर्च ऑपरेशन चला इसी दौरान एक महिला की लाश दिखाई दी जिसे देख रेस्क्यू में लगे लोग भी आंसुओं को रोक न पाए.. यहां मां के साथ 2 साल का मासूम बेटा भी  मिला. जब उन्हें निकाला गया तो मां की सांसे थम चुकी थी.. लेकिन बेटा उसके सीने से लिपटा हुआ हल्की सांस ले रहा था. जिसे देख लोगों की ऐसी अश्रु धारा निकली कि खुदा भी हैरान हो गया..मां ने अपनी बच्चे को सीने से लगा कर रखा था इतने बड़े सैलाब के बाद भी अंतिम वक्त तक मां ने अपनी लाडले को नहीं छोड़ा..

ऋषि के माता पीता शिला अर्जुन यादवअब दुनिया में नही है

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में हुए भीषण रेल हादसे ने कई परिवारों की दुनिया उजाड़ दी। लेकिन उसी मलबे के बीच एक जिंदगी बाहर निकल कर आई जिसने हर किसी की आंखें नम कर दी।हादसे के मलबे से जब राहतकर्मी एक-एक कर लोगों को निकाल रहे थे, तभी मलबे में एक महिला की लाश दिखाई दी। देखने पर ऐसा लग रहा था मानो मां ने आखिरी पल तक बेटे को संभालने की कोशिश की हो। पहले किसी को लगा दोनों मर चुके हैं पर कुछ पल बाद पास में पड़े बच्चे की हल्की सांसें महसूस हुईं। 2 साल का मासूम ऋषि अपनी मां के पास बेहोश पड़ा था और मौत के बाद भी उसकी मां शीला की बांहें उसे इस तरह से जकड़ी हुई थी जैसे उसका बेटा अब भी उसके सीने से लिपटा हुआ हो।

पास ही उसके पापा अर्जुन यादव और नानी मानमती की लाश पड़ी थी । तीनों की मौत हो चुकी थी, लेकिन शीला की ममता अब भी जिंदा थी क्योंकि इसी पकड़ की वजह से ऋषि की सांसें अभी भी चल रही थीं। मां ने आखिरी सांस तक अपने बेटे  को सीने से लगाए रखा। जब रेस्क्यू टीम ने बाहर निकाला , तो मां और बच्चे एक-दूसरे से लिपटे मिले, जैसे ज़िंदगी थम गई, लेकिन ममता नहीं। ये दृश्य देख वहां मौजूद हर आंख नम हो गई। एक मां की ममता ने मौत से भी लड़ने की कोशिश की हो …ऋषि के पारिवारिक सदस्य विशाल चंद्र केसरी ने बताया कि जब रेस्क्यू टीम मौके पर थी, तब कोच में आवाजें थम चुकी थीं। इस भीषण हादसे में किसी को ये उम्मीद नहीं थी कि एक नन्हीं जान अब भी धीरे-धीरे सांस ले रही है।

ऋषि के मामा राकेश यादव ने बताया कि उनका परिवार जांजगीर से ऋषि के पिता अर्जुन का इलाज कराकर अपने गांव देवरीखुर्द लौट रहा था। ट्रेन शाम करीब साढ़े 4 बजे के आसपास लाल खदान के पास पहुंची थी और यहीं मालगाड़ी से टकरा गई।हादसे के कुछ ही मिनटों में दर्जनों जिंदगियां खत्म हो गईं। उन्हीं में अर्जुन, शीला और मानमती भी शामिल थीं।

बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में इलाज के बाद ऋषि अब खतरे से बाहर है। लेकिन उसे अब भी समझ नहीं है कि क्या खो गया है। ऋषि की बुआ अर्चना यादव अभी उसकी देखरेख कर रही है।अर्चना ने बताया कि डॉक्टरों ने कहा है कि ऋषि अभी खतरे से बाहर है लेकिन जब वो उठता है, तो ‘मम्मी-मम्मी’ कहता है। फिर हमें देखकर रो पड़ता है। उसे क्या बताएं कि उसकी मम्मी अब नहीं है

भाई और भाभी की मौत से अर्चना खुद सदमे में है, वो ज्यादा कुछ नहीं कह पाईं, बस आंखों में आंसू भर आए। परिवार कहता है कि शायद ऋषि अभी छोटा है, इसलिए उसे दर्द का पूरा एहसास नहीं हुआ।लेकिन हर बार जब वो ‘मम्मी’ पुकारता है, तो सबकी आंखें नम पड़ जाती हैं। अब उसी मासूम की सांसें पूरे परिवार के लिए उम्मीद बन गई हैं

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