Friday, August 15, 2025
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सिंधी समाज की महिलाओं ने धूमधाम से मनाया-ट्रीजड़ी पर्व:.पति की दीर्घायु के लिए रखा व्रत

तिल्दा नेवरा -तिल्दा-में सिन्धी समाज द्वारा ट्रीजड़ी (तीजा) पर्व आज धूमधाम के साथ मन्य जा रहा है,इस मौके पर समाज की सुहागिन महिलाओ ने पति की दीर्घायु के लिए ट्रीजड़ी माता का व्रत रखकर,माता की पूजा अर्चना कर झूले में झुलाया.शाम को महिलाओ ने कथा सुनकर ट्रीजड़ी की विशेष पूजा की ,रात कोरात को वृति महिलाएं चंद्रदेव को अर्ध देकर व्रत पूरा कर भोजन करेंगी। इसके पहले आज सुबह 4 बजे उठकर व्रत रखने वाली महिलाओं ने सुबह फलाहार किया।ट्रीजड़ी का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति के दीर्घायु के लिए रखती हैं। वही कुंवारी लड़कियां अच्छे व्व मनचाहे वर पाने के लिए तिजोडी का व्रत करती है।

ट्रीजड़ी  को  लेकर महिलाओं में खासा उत्साह रहता है, एक दिन पहले सोमवार को  महिलाओं ने हाथों में मेहंदी लगाना  शुरू कर दिया था ,पूजा की सामग्री काले तिल, हरे मूंग और जव से ट्रीजड़ी माता की स्थापना कर रखी  थी । मना जाता है  कि काला तिल ट्रीजड़ी माता का, हरा मूंग हरियाली का और जव दीर्घायु एवं उन्नति का प्रतीक है।

ट्रीजड़ी का व्रत शुरू करने के पहले आज सुबह 4 बजे उठकर नेग अनुसार फलाहार किया .उसके बाद जल्द से  सजधज कर तैयार हो गई थी। घर में पूजा पाठ कर सुबह 11 से ट्रीजड़ी की पूजा अर्चना शुरू की गई। तिजड़ी  को झूले में झुलाया गया ‌। कई जगहों पर महिलाओं ने एकत्रित होकर भजन कीर्तन किया।सध्याकाल के आयोजनों में ट्रीजड़ी माता को झूले से उतारकर बीच में स्थापित करके भक्तों ने अपने परिवारों के साथ ट्रीजड़ी पर्व की पौराणिक कथा सुनी।

कथा में तीज पर्व और व्रत का महत्व बताया कि एक बार एक महिला ने ट्रीजड़ी का व्रत रखा था। तो उसके कष्ट से व्यथित भाई ने नकली चांद के दर्शन को अर्ध्य दिलाकर अपनी बहन का व्रत तोड़ दिया था। जिससे उसके पति की मृत्यु हो गयी थी। फिर उस महिला ने एक साथ तक विधि विधान से सेवा की और अगले साल पति को जीवीत किया।

रात को चांद निकलने के बाद सभी महिलाओं ने चन्द्र दर्शन के बाद अपना व्रत समाप्त  कर पति के सामने भोजन ग्रहण करेंगी। एक समय था जब राखी में आई बेटियां और बहने तिजडी का त्यौहार मायके में मानती थी। तिजड़ी के तीसरे दिन थधडी का ठंडा भोजन कर दूसरे दिन जन्माष्टमी का व्रत रखकर वापस ससुराल जाती थी। समय बदला अब बेटी और बहने अपने भाइयों को राखी बांधने के दूसरे दिन वापस ससुराल चली जाती हैं और यह सारे त्यौहार अपने ससुराल में ही मनाती हैं।  ट्रीजड़ी पर महिलाएं पारंपरिक सिंधी भजन व गीत भी गाती है।

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