आपदा में कोई मदद का एक हाथ आगे बढ़ा दे वह पीड़ितों के लिए भगवान बन जाता है. और जिन्हें भगवान में भरोसा होता है वह तो मदद के लिए उठ रहे हर हाथ को भगवान का भेजा हुआ दूत समझते हैं. केरल के वायनाड से एक ऐसी ही कहानी सामने आई है. यह कहानी आपको झकझोर कर रख देगी.
वायनाड: कहते हैं आपदा जब आती है बताकर नहीं आती है… संकट भरे दौड़ में हर तरफ बस निराशा होती है. लेकिन कुछ उम्मीदें भी होती हैं. उम्मीदें बस जिंदगी किसी तरह बच जाए होती है. ऐसे में डूबने वालों को एक तिनके का सहारा काफी होता है. आपदा में कोई मदद का एक हाथ आगे बढ़ा दे वह पीड़ितों के लिए भगवान बन जाता है. और जिन्हें भगवान में भरोसा होता है वह तो मदद के लिए उठ रहे हर हाथ को भगवान का भेजा हुआ दूत समझते हैं. केरल के वायनाड से एक ऐसी ही कहानी सामने आई है. यह कहानी एक आदिवासी परिवार की है. यह कहानी उस परिवार के तीन मासूम बच्चों की है. जो रेस्क्यू करने के बाद अधिकारियों से लिपट गए. बच्चे ऐसे लिपटे रहे जैसे गोद मां की हो.
बता दें कि वायनाड में लैंडस्लाइड से अबतक 350 से ज्यादा लोगों की जान चली गई है. वहीं 200 से ज्यादा लोग अभी तक लापता हैं. इन्ही लापता लोगों के लिए केरल वन विभाग रेस्क्यू ऑपरेशन चला रहा है. इसी ऑपरेशन के दौरान एक आदिवासी परिवार मिला. जो पहाड़ों पर झड़ने के पीछे बने गुफा में थे. इनमें मासूम बच्चे भी शामिल थे. यह रेस्क्यू ऑपरेशन लगभग 8 घंटे तक चलाया गया.
प्रकृति भी कितना निष्ठुर हो जाती है…
मंगलवार को वायनाड में भूस्खलन ने पूरे गांवों को तबाह कर दिया था. तस्वीर में कमजोर और डरे हुए बच्चे छह सदस्यों वाले आदिवासी परिवार के बच्चे थे. ये अट्टामाला के पास सोचीपारा झरने के नीचे एक गुफा में भूख से तड़प रहे थे. भूख की तड़प वह भी मासूम बच्चों के साथ. प्रकृति भी कितना निष्ठुर हो जाती है… मासूमों तक को नहीं छोड़ती. इस परिवार में पांच साल से कम उम्र के चार बच्चे शामिल थे.
बच्चों को मिला अधिकारियों से मां जैसा दुलार
जब तक अधिकारी उन बच्चों तक पहुंचे तब तक भूख के मारे बच्चों की हालत काफी खराब हो गई थी. मासूम आंखों में बस बची थी तो केवल उम्मीदें. क्योंकि जान तो भूख से जा ही रही थी. गुफा में फंसे बच्चो के पास जेसै ही अधिकारी पहुंचे बच्चे उनसे लिपट गए. बच्चे जैसी अपनी मां से लिपटते हैं, तस्वीरों में ठीक वैसे ही बच्चे अधिकारियों से लिपटे हुए हैं. अधिकारियों की भी दाद देनी होगी. उन्होंने बच्चों से उतना ही लाड़ दिखाया जितने कि बच्चे उम्मीद कर रहे थे. बच्चे अट्टामाला के पास सोचीपारा झरने के नीचे एक गुफा में भूख से तड़प रहे थे.
जैसे ही बच्चे अधिकारियों के गोद से लिपटे अधिकारियों की जिम्मेदारी और बढ़ गई. क्योंकि अब उनकी जान अधिकारियों के हवाले थी. प्रकृति से सताए और खौफ से जूझ रहे बच्चों की आंखों में उम्मीद की एक किरण जाग गई थी. गुफा में फंसे इन बच्चों को निकालने के लिए अधिकारियों ने कड़ी मशक्कत की. रस्सियों के सहारे पाहड़ से नीचे आने तक का सफर मौत से जिंदगी की ओर बढ़ने का सफर था. यह इतना आसान भी नहीं था. अब बच्चे रेस्क्यू सेंटर में हैं.