Sunday, December 15, 2024
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धान खरीदी के लिए केवल 47 दिन, पिछली बार से इस बार अलग हैं ये नियम, बीजेपी ने पलट दिए हैं कांग्रेस सरकार के यह फैसले

  • छत्तीसगढ़ में तीन दिन बाद धान की खरीदी
  • सरकार का दावा- तैयारियां पूरी हो गई हैं
  • भूपेश बघेल ने सरकार पर लगाई आरोप
  • कहा- धान खरीदी में साजिश कर रही सरकार

रायपुर: छत्तीसगढ़ में धान खरीदी के पहले सियासत तेज हो गई है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि इस बार धान खरीदी के कई नियम बदल दिए गए हैं। राज्य में इस बार 14 नवंबर से धान की खरीदी हो रही है। धान खरीदी को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बीजेपी की सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि सरकार धान खरीदी में साजिश कर रही है। भूपेश बघेल ने कहा- विष्णु देव साय सरकार की नई नीति से स्पष्ट है कि वह किसानों से धान खरीदी कम करना चाहती है। इस बार 160 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी का लक्ष्य है।

भूपेश बघेल ने कहा कि इसके लिए 14 नवंबर से 31 जनवरी तक का समय निर्धारित है। शनिवार, रविवार और सरकारी छुट्टियों को घटाकर कुल 47 दिन मिल रहे हैं। इसका मतलब यह है कि प्रति दिन सरकार को लगभग साढ़े तीन लाख मिट्रिक टन की खरीदी प्रति दिन करनी होगी, तब जाकर लक्ष्य पूरा होगा। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा- छत्तीसगढ़ में तीन दिन बाद यानी 14 नवंबर से धान खरीदी शुरु होनी है, लेकिन धान खरीदी करने वाली 2,058 समितियों के लगभग 13000 कर्मचारी चार नवंबर से हड़ताल पर हैं।

भूपेश बघेल ने कहा- धान उपार्जन की हमारी सरकार की नीति को भाजपा सरकार ने बदल दिया है। नई नीति के अनुसार 72 घंटे में बफर स्टॉक के उठाव की नीति को बदल दिया है। पहले इस प्रावधान के होने से समितियों के पास ये अधिकार होता था कि वे समय सीमा में उठाव न होने पर चुनौती दे सकें। अब जो बदलाव हुआ है उसके बाद बफर स्टॉक के उठाव की कोई सीमा ही नहीं है। पहले मार्कफेड द्वारा समस्त धान का निपटान 28 फरवरी तक कर देने की बाध्यता रखी गई थी अब इसे बढ़ाकर 31 मार्च कर दिया गया है। धान मिलिंग के लिए हमारी सरकार ने प्रति क्विंटल 120 रुपए देने का निर्णय लिया था। अब सरकार ने मिलर के लिए 120 रुपए को घटाकर 60 रुपए कर दिया है।

भूपेश बघेल ने कहा- अगर सुखत की समस्या आती है यह एक तथ्य है तो दो महीने समितियों के पास या संग्रहण केंद्र में धान रखने के बाद धान की मात्रा में कमी आएगी ही आएगी। इससे एक तो समिति को बड़ा आर्थिक नुकसान होगा और इसका नतीजा यह होगा कि समितियां भविष्य में खरीदी करना बंद कर देंगी। दूसरी कानूनी समस्या यह आएगी कि हर केंद्र में खरीदे गए धान और स्टॉक में रखे धान की मात्रा में बड़ा फर्क दिखेगा। जिसकी ज़िम्मेदारी अंततः समिति के कर्मचारियों पर आन पड़ेगी। नई नीति में यह राशि समिति और कर्मचारियों के पास जाने की बजाय सीधे संबंधित जिला सहकारी बैंक शाखाओं में चली जाएगी। नई नीति में समितियों पर यह बोझ भी डाल दिया गया है कि उपार्जित धान को समितियां ही मिलर को लोड करके देंगीं। यह अतिरिक्त आर्थिक बोझ होगा।

सरकार धान नहीं खरीदने का षडयंत्र कर रही है

भूपेश बघेल ने कहा- एक ओर कर्मचारी हड़ताल पर हैं और दूसरी ओर राइस मिलर धान उठाने से इनकार करना शुरु कर चुके हैं। कर्मचारी बता रहे हैं कि हड़ताल की वजह से अब तक धान खरीदी की तैयारियां भी नहीं हुई हैं। न बारदाना उतरा है और न धान खरीदी केंद्रों की साफ-सफाई हुई है। किसानों का पंजीयन भी नहीं हुआ है। अगर हड़ताल खत्म भी हो जाती है तो कम से कम सात दिनों की तैयारी लगती है। ऐसे में 14 नवंबर से धान खरीदी होना संभव ही नहीं दिखता। कुल मिलाकर किसानों को प्रति क्विंटल 3100 रुपए देने का वादा करके भाजपा पछता रही है और पहले की ही तरह किसानों को फिर ठगने की तैयारी है।

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