सीएम चुनने और नई सरकार के गठन में लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। 3 दिसंबर को नतीजे आने के बाद बीते पांच दिनों से सीएम चेहरे को लेकर मंथन ही जारी है। अब सोमवार तक नए सीएम व सरकार का फैसला होने की उम्मीद है।
इस बार भाजपा ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री का चेहरा पहले से घोषित नहीं किया था, मुख्यमंत्री का चेहरा प्रोजेक्ट करने से आलाकमान कतराता रहा, जबकि प्रदेश में इससे पूर्व 1998 में उमा भारती के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था, इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था।
हुबली प्रकरण में उमा भारती को इस्तीफा देना पड़ा था बाद में बाबूलाल गौर और फिर शिवराजसिंह चौहान को प्रदेश के मुखिया पद की कमान सौंपी गई। पिछले चुनावों में मुख्यमंत्री के लिए शिवराज सिंह के नाम की घोषणा करने में देरी नहीं हुई थी, लेकिन इस बार मुख्यमंत्री के नाम को लेकर काफी विलंब हो रहा है। स्पष्ट बहुमत है, आलाकमान और पार्टी के बड़े नेता की प्रदेश में बात विधायकों द्वारा स्वीकार की जाएगी, फिर भी सीएम के नाम की घोषणा में विलंब हो रहा है।
1993 और 1998 में दिग्विजय सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री बने उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया था, इसलिए उनके नाम पर कोई विवाद नहीं था। 2018 में कमलनाथ का चेहरा मुख्यमंत्री के तौर पर था, इसलिए वे मुख्यमंत्री बने। पिछले तीन दशक में चुनाव परिणाम की घोषणा और मुख्यमंत्री के पद की शपथ के दिनों में अंतर देखे तो कुछ जायदा नहीं रहा है तीन या चार दिन काफी रहे हैं परंतु 2018 में छह दिन का अंतर रहा था। यह सब पूर्व में चेहरे तय होने के बावजूद हुआ। इस बार लगता है कि प्रदेश के मुखिया के शपथ लेने में अभी दो या तीन दिन और लगेंगे। यदि ऐसा होता है तो पिछले तीन दशक में परिणाम की घोषणा होने के बाद मुख्यमंत्री की शपथ लेने में यह सबसे लंबा इंतजार होगा। वैसे भी 2023 में मतदान और परिणाम में काफी लंबा 16 दिन का समय लग गया और अब स्पष्ट बहुमत के बाद मुख्यमंत्री का नाम तय करने में हो रहा विलंब यह बताता है कि आलाकमान को नाम चयन में काफी परेशानी हो रही है। इसकी वजह कई दावेदारों के साथ जातिगत समीकरण और आगामी लोकसभा चुनाव की रणनीति को भी साधना है।