नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय आज आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की उस याचिका पर फैसला सुनाएगा, जिसमें उन्होंने आबकारी नीति से जुड़े धनशोधन मामले में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी है. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केजरीवाल की दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा ने 3 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
पिछली सुनवाई में ईडी ने हाईकोर्ट को बताया था कि कथित आबकारी नीति घोटाले से जुड़े धनशोधन मामले में गिरफ्तार मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आगामी चुनावों के आधार पर गिरफ्तारी से ‘छूट’ का दावा नहीं कर सकते, क्योंकि कानून उनके और एक ‘आम आदमी’ के लिए समान रूप से लागू होता है.
इक्कीस मार्च को ईडी द्वारा गिरफ्तार और फिलहाल न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल में बंद ‘आप’ प्रमुख केजरीवाल ने अपनी गिरफ्तारी के ‘समय’ को लेकर सवाल उठाया और कहा कि यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव एवं समान अवसर मुहैया कराये जाने सहित संविधान की बुनियादी संरचना का उल्लंघन है.
केरजीवाल की रिहाई की राहत की मांग करते हुए, वरिष्ठ अधिवक्ता सिंघवी ने दलील दी थी कि अगस्त 2022 में ईडी द्वारा जांच शुरू करने के डेढ़ साल बाद धनशोधन निवारण अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन में आप नेता को गिरफ्तार करने की कोई आवश्यकता नहीं थी. एजेंसी की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एस. वी. राजू ने याचिका का यह कहते हुए विरोध किया कि इस मामले में प्रथम दृष्टया धनशोधन का अपराध बनता है और वर्तमान में, याचिकाकर्ता के खिलाफ जांच प्रारंभिक चरण में है.
एएसजी ने ईडी के खिलाफ लगाए गए पूर्वाग्रह के आरोपों से इनकार किया और कहा कि उनका मामला सबूतों पर आधारित है और ‘अपराधियों को गिरफ्तार किया ही जाना चाहिए और जेल भेजना चाहिए’. उन्होंने यह भी कहा कि उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि ‘आर्थिक अपराध हत्या से भी बदतर है’ और कानून का शासन सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार अनिवार्य करता है.
ईडी की ओर से यह भी दलील दी गयी कि याचिका में याचिकाकर्ता के खिलाफ पारित पहले हिरासत आदेश पर हमला किया गया है, न कि बाद के आदेशों पर. अदालत ने केजरीवाल को पहली बार 28 मार्च तक ईडी की हिरासत में भेजने का आदेश दिया था.
ईडी ने 21 मार्च को केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया था क्योंकि उच्च न्यायालय ने उन्हें ईडी की दंडात्मक कार्रवाई से संरक्षण देने से इनकार कर दिया था. यह मामला 2021-22 के लिए दिल्ली सरकार की आबकारी नीति को तैयार करने और क्रियान्वित करने में कथित भ्रष्टाचार और धनशोधन से संबंधित है और बाद में उस नीति को रद्द कर दिया गया था.